Police Charge Sheet kya hoti hai : पुलिस चार्जशीट क्या होती है |

Police Charge Sheet kya hoti hai
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Police Charge Sheet kya hoti hai : पुलिस चार्जशीट क्या होती है , पुलिस जाँच रिपोर्ट कब Court में दाखिल की जाती है।

अक्सर ही हमने न्यूज़ में या टीवी में पुलिस चार्जशीट के बारे में सुना या पढ़ा होगा, आज के इस लेख में हम पुलिस चार्जशीट के यानि पुलिस जाँच रिपोर्ट के बारे में जानेंगे। दरअसल जब भी कोई अपराध होता है तो सबसे पहले पुलिस स्टेशन में अपराधी के खिलाफ मामला दर्ज़ किया जाता है जिसे एफआईआर कहते हैं। इसके बाद ही पुलिस उस मामले की आगे जाँच करती है। इसके बाद उस अपराध से सबंधित पहलुओं पर जाँच पड़ताल करती है कि अपराध किसने किया , कैसे हुआ , अपराध में कौन कौन सी चीज़े इस्तेमाल हुई , या अपराध में कितने लोग शामिल थे।

जब पुलिस किसी मामले में कोर्ट जाती है तो उसको पूरी रिपोर्ट पेश करनी होती है जिसमे सबंधित अपराध की छोटी से बड़ी हर बात लिखी होती है , उस रिपोर्ट में पुलिस द्वारा अपराध सबंधी सारी जानकारी डिटेल में दी जाती है। इसे ही पुलिस चालान या पुलिस चार्जशीट कहा जाता है। इस चालान को आरोप पत्र या पुलिस जाँच रिपोर्ट भी कहा जाता है।

Police Charge Sheet kya hoti hai
Police Charge Sheet Sample

पुलिस चालान कब पेश किया जाता है। Police Charge Sheet kya hoti hai

एक बात तो ऊपर बताई जा चुकी है कि पुलिस चार्जशीट किसी भी मामले में पुलिस द्वारा उस अपराध सबंधित सभी साक्ष्य इकठे करने के बाद ही अदालत में पेश की जाती है , लेकिन ऐसा नहीं है कि पुलिस इस चार्जशीट को अपराध होने के जितने मर्ज़ी समय बाद अदालत में पेश करे। बल्कि पुलिस को अपराध की छानबीन पूरी करके 90 दिनों के अंदर अंदर चार्जशीट कोर्ट में दाखिल करनी पड़ती है। ये 90 दिनों का समय पुलिस को तब मिलता है जब अपराध गंभीर किस्म का हो , जिसमे दस साल से

ऊपर की सजा हो , अन्यथा जिस अपराध में सजा दस साल से कम की होती है उसमे पुलिस को अपराध के बाद से 60 दिनों के अंदर अंदर चार्जशीट दाखिल करनी होती है। ये चार्जशीट सीआरपीसी की धारा 173 के अनुसार दाखिल की जाती है।

अगर पुलिस अपराध सबंधी 90 दिनों में या 60 दिनों में चार्जशीट दाखिल नहीं करती तो आरोपी को जमानत मिल जाती है। इसलिए आरोपी को गिरफ्तार करने के बाद व् मामला दर्ज़ होने के बाद पुलिस द्वारा जाँच की जाती है अपराध के सबूत इकठे किये जाते हैं फिर वो अदालत के समक्ष पेश किये जाती है। जांच में यदि आरोप सही पाया जाता है तो मुकदमा पंजीकृत होगा। अन्यथा निरस्त कर दिया जाएगा। यह अधिकार जांच अधिकारी को है।

जब अदालत में चालान पेश हो जाता है तो अदालत आगे की कार्रवाई करते हुए साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर आरोपियों के खिलाफ संज्ञान लेती है और उन्हें समन जारी करती है। इसके बाद आरोप पर बहस होती है।

वहीं यदि आरोपी के खिलाफ जांच एजेंसी को सबूत न मिले, तो वह सीआरपीसी की धारा-169 के तहत क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर देती है। अदालत क्लोजर रिपोर्ट में पेश तथ्यों को देखती है और फिर मामले के शिकायती को नोटिस जारी करती है। शिकायती को अगर क्लोजर रिपोर्ट पर आपत्ति है तो वह इसे दर्ज कराता है। क्लोजर रिपोर्ट पर जांच एजेंसी की दलीलों को भी अदालत सुनती है।

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Police Charge Sheet

क्या होती है पुलिस क्लोज़र रिपोर्ट police closure report

चार्जशीट के बिना एक और शब्द भी हम सुनते रहते हैं जो कि पुलिस क्लोज़र रिपोर्ट है दरअसल जब पुलिस के पास किसी अपराध के सबूत होते हैं तो उसे फाइल तैयार करके पुलिस कोर्ट में पेश कर देती है जिसे पुलिस चालान कहा जाता है , वहीं अगर किसी मामले में पुलिस को उस अपराध सबंधित कोई भी एविडेंस नहीं मिलते तो पुलिस अदालत में उस मामले की क्लोज़र रिपोर्ट पेश कर देती है। फिर यदि अदालत को लगता है कि आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलने के कोई भी सबूत नहीं है तो अदालत आरोपी को बरी कर देती है।

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क्लोजर रिपोर्ट के साथ पेश तथ्यों और साक्ष्यों को देखने के बाद अगर अदालत को लगता है कि आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए साक्ष्य हैं तो वह उसी क्लोजर रिपोर्ट को चार्जशीट की तरह मानते हुए आरोपी को समन जारी कर सकती है।
यदि अदालत क्लोजर रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं होती, तो जांच एजेंसी को आगे जांच के लिए कह सकती है।
जानकारों के अनुसार एक बार क्लोजर स्वीकार होने के बाद भी जांच एजेंसी को बाद में आरोपियों के खिलाफ भरपूर सबूत मिल जाएं, तो दोबारा चार्जशीट दाखिल की जा सकती है, लेकिन एक बार ट्रायल खत्म हो जाए और आरोपी बरी हो जाए तो उसी केस में दोबारा केस नहीं चलाया जा सकता।

केस वापस कैसे लिया जाता है

सीआरपीसी की धारा 321 के तहत अभियोजन पक्ष मुकदम वापस भी ले सकता है , लेकिन इससे पहले सरकारी वकील को सरकार से अनुमति लेनी होती है फिर सरकारी वकील कोर्ट में दलील पेश करता है कि इस मामले को सर्वजनक हित में चलना ठीक नहीं , लिहाजा मामला वापस लेने की इजाजत दी जाये। फिर अगर अदालत सरकारी वकील की दलीलों से संतुष्ट होती है तो मुकदमा वापस लेने के इजाजत दे देती है नहीं तो उसकी अर्ज़ी ठुकरा देती है।

 


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