बच्चों द्वारा अपने माता-पिता को घर से निकालने पर माता-पिता के कानूनी अधिकार
बच्चों द्वारा अपने माता-पिता को घर से निकालने पर माता-पिता के कानूनी अधिकार
माता -पिता की देखभाल करना बच्चों की जिम्मेदारी है। कई बार क्या होता है कि बच्चेे इन जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेते हैं या माता -पिता से सही व्यवहार नहीं करते इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए कानून उनकी मदद कर सकता है। ऐसा कई बार होता कि बेटे बहू माता – पिता की देखभाल से इंकार कर देते हैं या उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते उन्हें समय पर भोजन नहीं देते न ही कोई सुख -सुविधा मुहैया करवाते हैं। कई बार बच्चे माता -पिता को घर से निकाल देते हैं अभिभावकों को समझ नहीं आता या वो दर-दर की ठोकरें खाते हैं या वृद्धआश्रम में रहने लगते हैं।
भारतीय संविधान के मुताबिक हर व्यकित को सम्मानजनक जीवन जीने व् बुनियादी सुविधयों को पाने का हक है इसलिए बच्चों द्वारा देखभाल के लिए मना करने पर अभिभावक संविधान द्वारा बनाए कानून का इस्तेमाल कर के अपने अधिकारों को हासिल कर सकते हैं।
माता -पिता की जिम्मेदारी केवल बेटों तक सिमित नहीं है बेटियां भी अपने माता -पिता के भरण -पोषण के लिए समान दायित्व या कर्तव्य रखती हैं।
Legal rights of parents when children eject them from home
कानून -माता -पिता और वरिष्ठ अधिनियम ,2007 के तहत वरिष्ठ नागरिकों को भरण -पोषण प्रदान करने के लिए बच्चों और क़ानूनी उत्तराधिकारियों का क़ानूनी दायित्व बनता है। इस अधिनियम के तहत भरण -पोषण का दावा करते हुए ध्यान रखें कि दावा करने वाले अपनी कमाई से अपना भरण -पोषण करने में असमर्थ हों। माता -पिता के मामले में बच्चे और दादा -दादी के मामले में वयस्क पोते -पोतियों ,पुरुष और महिला दोनों ,माता-पिता और दादा -दादी को भरण पोषण का भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है।
कल्याण (संशोधन )विधेयक ,2019 में लाया गया जिसके तहत रिश्तेदार भी भरण पोषण के जिम्मेदार हैं ,इसमें माता -पिता को बेसहारा छोड़ने पर जुर्माने की राशि और कारावास की अवधि भी बढ़ाई गई है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 (1 )(डी)
इसमें कहा गया है कि यदि कोई व्यकित ,जिसके पास पर्याप्त साधन हैं ,अपने माता -पिता भरण -पोषण की उपेक्षा करता है या इंकार करता है ,वे लोग खुद असमर्थ हैं तो मजिस्ट्रेट उस व्यकित को उनके भरण -पोषण का आदेश दे सकते हैं। माता -पिता जैविक या सौतेले अपने किसी भी बच्चे से भरण -पोषण का दावा कर सकते हैं। धारा 125 के तहत बेटियां भी अपने माता -पिता का भरण पोषण के लिए उत्तरदायी हैं।
सौतेली माता के मामले में वह भरण -पोषण का दावा तभी कर सकती है जब वह या तो विधवा हो या उसका जन्मजात कोई बेटे या बेटी न हो। विवाहित बेटियां भी माता -पिता को गुजाराभत्ता देने के लिए उत्तरदायी हैं ,यदि वे पूरी तरह उस पर निर्भर है।
हिन्दू दत्तक ग्रहण और भरण -पोषण अधिनियम ,1956
इस अधिनियम की धारा 20 के अनुसार बच्चों का दायित्व है वे अपने माता -पिता की संभाल करें। इसमें ‘ ‘बच्चे ‘शब्द में पोता और पोती शामिल नहीं है।
सजा भी हो सकती है
यदि बच्चे व् रिश्तेदार देखभाल से इंकार करे हैं या उचित देखभाल नहीं करते हैं ,या आवश्यकताओं की कमीं है तो स्थानांतरण को धोखाधड़ी ,जबरदस्ती या दबाव द्वारा किया गया माना जाएगा। ऐसे मामले में ,ट्रिब्यूनल बच्चों और रिश्तेदारों को दोषी ठहरा सकता है और उनके नाम पर संम्पति के हस्तांतरण को रोक सकता है। यदि बच्चे या रिश्तेदार उचित देखभाल नहीं करते है या उन्हें छोड़ देते हैं ,तो यह इस अधिनियम का उलंघन होगा ,जिसके लिए 3 महीने की कैद या 5 हजार रूपये जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
इस तरह मिलेगी मदद
बुजुर्ग 14567 पर कॉल करके मदद मांग सकते हैं। इसके बाद विभाग का व्यकित कार्यवाई करेगा।
जिला अधिकारी के पास भी अधिकार हैं। यदि कोई व्यकित उनके पास शिकायत दर्ज करता है तो 30 दिनों के अंदर उचित कार्यवाही करनी होती है। पुलिस स्टेशन में भी शिकायत दर्ज करवा सकता है।
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