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kahan gira tha ulkapind puri information
यहां गिरा था उल्कापिंड एक उल्कापिंड से इतनी तबाही !
पृथ्वी अरबों साल पुरानी है | मनुष्यों के पहले भी कई प्रकार के जीव यहां रहते थे | इन्हीं में से एक डायनासोर भी थे जिनके युग को पूर्णत समाप्त करने में एक उल्कापिंड की टककर महाविस्धवंसक साबित हुई थी | जहां यह उल्कापिंड पृथ्वी से टकराया था वहां 180 किमी चौड़ा गड्ढा आज भी मौजूद है |
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उस उल्कापिंड का व्यास 12 किलोमीटर था व् उसकी गति 43 हजार किमी प्रतिघंटे थी | इस महाप्रलयकारी टककर से 180 किमी चौड़ा गड्ढा मेक्सिको की खाड़ी में हुआ ,जिसे आज चिक्सुलब क्रेटर कहा जाता है |2020 में नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित शोध के अनुसार उल्कापिंड 60 डिग्री के कोण से पृथ्वी की सतह से टकराया था जिसके कारण यह अधिक विनाशकारी साबित हुआ |उल्कापिंड के टकराने के साथ पृथ्वी के वातावरण में भारी मात्रा में धूल का गुबार फैल गया था |
वर्ष 1980 में नोबल पुरुस्कार विजेता लुईस वॉटलर अल्वारेज और उनके पुत्र ने एक मत प्रतिपादित किया था पृथ्वी पर इरिडियम धातु से समृद्ध जो ऐतिहासिक परत है उसका कारण एक विशाल उल्कापिंड के पृथ्वी से टकराने में छिपा हुआ है | माना गया कि इस जबरदस्त टककर और उससे उपजी आपदा के कारण धरती से डायनासोर युग का अंत हुआ होगा | इरिडियम धातु दुनिया में पाए जाने वाले दुर्लभ धातुओं में से एक है | आमतौर पर इसका संबंध अंतरिक्ष की वस्तुओं से जोड़ा जाता है , यह इरिडियम उल्कापिंड में प्रचुर मात्रा में मिलता है |
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अल्वारेज द्वारा दिया गया यह मत पहले तो विवादास्पद रहा लेकिन अब उनका यह मत सर्वमान्य है |चिक्सुलब क्रेटर की मौजूदगी इस मत की पुष्टि करता है | जब क्रेटर की प्राचीनता पर शोध किया गया तो इस क्रेटर के बनने और जमीन पर विचरने वाले डायनासोर की प्रजातिओं के लुप्त होने का काल समान पाया गया |इस वृहद उल्कापिंड के धरती से टकराने के बाद अत्यधिक मात्रा में धूल और मलबा वातावरण में फैल गया था |उत्तर अमेरिकी महादीप के निकट करीब 150 फ़ीट ऊंची समुद्री लहरें उठी |हजारों मीलों का जंगल धूं-धूं कर जल उठा | धरती पर रहने वाले जीव इस दावानल की भेंट चढ़ गए |
एक उल्कापिंड से इतनी तबाही !
इस महाप्रलय के लिए सिर्फ उल्कापिंड ही जिम्मेदार नहीं था |बहुत सारे अन्य कारण थे | उल्कापात के पूर्व पृथ्वी का वातावरण बदल रहा था | तापमान और मौसम में असामान्य परिवर्तन हो रहा था |इसने गृहवासियों के जीवन को और भी मुश्किल बना दिया था | हमारे देश में दक्क्न के पठार में भी अलग प्रकार की समस्या सर उठा रही थी |हालांकि इसका संबंध इस उल्कापात से नहीं था ,लेकिन यहां पर हलचलें भी हो रही थी |लावा जमीन से बाहर आकर जमने लगा था | इसी लावा को आज दक्क्न उदभेदन यानी दक्क्न ट्रेप कहा जाता है |
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पॉल बताते है , ‘ 20 लाख साल तक अत्यधिक मात्रा में ज्वालामुखी गतिविधियां हुई | इससे वातावरण में अनेक गैसें इकट्ठी हुई और इसका धरती पर बुरा प्रभाव हुआ | इसके कई दूरगामी परिणाम सामने आए | साथ ही महाद्वीपों का अपना जगह से सरकना भी जारी था | इससे बड़े -बड़े समुन्द्रों का निर्माण हुआ |इससे महानगर भी बदले और उनका जो एक तयशुदा मौसम का ढांचा था वह भी | इसका बड़ा गहरा असर जलवायु और वनस्पतियों पर हुआ |’
सभी जीव गायब कैसे हुए ?
यह प्रश्न भी उठा उत्तरी अमेरिका के निकट पृथ्वी से टकराए इस उल्कापिंड से सारी दुनिया की लगभग 75 % प्रजातियां कैसे एक साथ काल कवलित हो गई| डायनासोर पर शोध करने वाले प्रोफेसर पॉल बैरट इसका कारण बताते हैं | बकौल पॉल , ‘उल्कापिंड धरती से बहुत ही तीर्व गति से टकराया था |
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इससे एक बहुत ही बड़े क्रेटर का निर्माण हुआ |इसका तत्काल प्रभाव तो यह हुआ उस क्षेत्र की पूरी प्रजातियां तुरंत नष्ट हो गई | इस विस्फोट से अत्यधिक मात्रा में मलबा वातावरण में फैलता चला गया |दुनियाभर में इसका काला धुंआ छाने लगा | हालांकि ,इससे पूरी तरह से सूर्य ढक तो नहीं गया था ,लेकिन धरती तक सूर्य का प्रकाश पहुंचना कम हो गया था |
इससे पौधों को नुकसान हुआ | पौधों का उगना ,बढ़ना धीरे -धीरे कम होने लगा |इसका असर शाकाहारी जीवों पर हुआ और उनकी क्षमताएं धीरे -धीरे क्षीण होती गई |मांसाहारी जीवों का जिंदा रहना भी मुश्किल हो गया क्योंकि भोजन कम होता गया और परिस्तिथियाँ बद से बदतर |जमीन हो या समुन्द्र सभी जीवों के जीवन पर किसी न किसी रूप में प्रतिकूल असर हुआ |