बिहार, यूपी की ऑर्केस्ट्रा डांसरों की कहानी: पिंजरे में बंद लड़कियां और गिद्ध की तरह झपटते लोग
उम्र के तीसरे दशक के आख़िर में चल रही एक महिला इन लड़कियों का परिचय कराती है. ये लड़कियां बिहार के कुछ इलाक़ों की शादियों या पार्टियों में बुलाए जाने वाले ख़ास तरह के ऑर्केस्ट्रा बैंड में नाचने-गाने का काम करती हैं. लेकिन अपने फ़न के प्रदर्शन के दौरान अक्सर उनके साथ ज़्यादतियां होती हैं. (BBC के हवाले से )
उन्हें ज़बरदस्ती छुआ जाता है. उनकी छाती पकड़ ली जाती है और कई बार उनके साथ रेप भी हो जाता है.
शादियों पर होने वाले इस जमावड़े में की जाने वाली फ़ायरिंग तो आम है. अक्सर ऐसी फ़ायरिंग में इन लड़कियों के मारे जाने की ख़बरें आती रहती हैं. 24 जून को नालंदा में ऐसे ही एक शादी समारोह में हुई फ़ायरिंग में स्वाति नाम की लड़की की मौत हो गई. गोली उसके सिर में घुस गई. एक पुरुष डांसर को भी गोली लगी.
कोरोना से महिला डांसरों की स्थिति दयनीय
लड़कियों का कहना है कि कोरोना महामारी ने उन्हें और कमज़ोर बना दिया है. लॉकडाउन की वजह से काम मिलना मुश्किल हो गया है. कहां से किराया दें और परिवार कैसे पालें. ऑर्केस्ट्रा बैंड में गाने वाली रेखा वर्मा कहती हैं कि कुछ को तो देह के धंधे में उतरना पड़ा है.
इन लड़कियों को जिन पिंजरों में डांस कराया जाता है, वे एक किस्म के पहिये वाले ट्रॉलियां होती हैं. महिला डांसरों को लोग छू न सकें इसलिए यह इंतज़ाम किया जाता है. ऑर्केस्ट्रा बैंड के आयोजकों का कहना है कि यह इन महिलाओं की सुरक्षा के लिए है. लेकिन इस तरह के पिंजरों में डांस करना इन महिलाओं को अपनी प्राइवेसी में दख़ल लगता है. दिव्या कहती हैं, “आख़िर पिंजरा तो पिंजरा ही है.”
स्टेज तो कम से कम दिव्या को इस बात का थोड़ा अहसास कराता है कि वह जिस दुनिया में जाना चाहती थीं, उससे इसका थोड़ा ही सही कुछ न कुछ मेल तो है. लेकिन उनकी नज़र में पिंजरा तो पिंजरा ही है.
जून महीने की एक रात चमचमाती ड्रेस पहने तीन लड़कियां ऐसे ही एक एक पिंजरे में डांस कर रही थीं. कुछ पुरुष इन्हें घेर कर अपने-अपने मोबाइल पर वीडियो बनाने में लगे थे. ट्रॉली अपने पहिये पर सरकती विवाह स्थल की ओर जा रही थी.
वहां तक पहुंचते-पहुंचते ट्रॉली कई बार रुकी. लाउडस्पीकर पर कोई भोजपुरी गाना ज़ोर-ज़ोर से बज रहा था. पिंजरे में बंद लड़कियां चांदी के डैने वाली चिड़ियों की तरह लग रही थीं. इन ‘ऑर्केस्ट्रा बैंड’ में जिस तरह का डांस होता है, उसी तरह का डांस करते हुए ये लड़कियां अपने कूल्हे मटका रही थीं, छातियां हिला रही थीं.
दिव्या कहती हैं, “हमने मोलभाव की अपनी ताक़त खो दी है”.
नज़रें ऊंची कर अपने कपड़े संभालते हुई वह कहती हैं, “लोग हमारे पास गिद्धों की तरह आते हैं. हमारे कपड़े तक फाड़ डालते हैं”.
स्टेज से लेकर पिंजरों तक हर वक़्त इनका शिकार होता रहता है. यही इनकी ज़िंदगी है. पिंजरे में बंद चिड़िया की ज़िंदगी.
दिव्या फिर भी सपने देखती हैं. वह बताती हैं कि फ़िल्मों का उन्हें किस कदर चाव था.
जब भी किसी रात डांस प्रोग्राम में उनके चारों ओर ‘गिद्धों’ का मंडराना शुरू होता है तो वह उस खूबसूरत एक्ट्रेस के चेहरे को याद करती हैं, जिसके नाम पर उन्होंने अपना नाम दिव्या रखा था. ( Full Report By BBC)
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