गालियों की गिनती में व्यस्त बीजेपी: असली मुद्दों से कब निपटेगी? Prime Minister Modi’s Tears A Diversion from BJP’s Failures

Prime Minister Modi’s Tears A Diversion from BJP's Failures
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गालियों की गिनती में व्यस्त बीजेपी: असली मुद्दों से कब निपटेगी? Prime Minister Modi’s Tears A Diversion from BJP’s Failures

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने हाल ही में बयान दिया कि “कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के नेताओं ने पिछले 10 सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 110 से ज्यादा गालियां दी हैं।” यह बयान न केवल राजनीतिक हमले की तरह दिखता है, बल्कि इससे बीजेपी की चुनावी रणनीति का भी खुलासा होता है। पार्टी एक बार फिर असली मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है।

प्रधानमंत्री का “रोने” वाला रवैया: क्या यह सही है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया बयानों में यह देखा गया है कि वे बार-बार विपक्ष द्वारा दी गई गालियों का जिक्र करते हैं। उन्होंने जनता के सामने कई बार यह कहा कि उन्हें अपमानित किया गया, गालियां दी गईं। यह रवैया किसी छोटे बच्चे की तरह लगता है, जो छोटी-छोटी बातों पर रोता रहता है। क्या देश के प्रधानमंत्री का इस तरह जनता के सामने “शिकायत” करना सही है? प्रियंका गाँधी ने भी अपने बयानों में पीएम को रोने वाला प्रधानमंत्री कहा है उन्होंने कहा देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब कोई प्रधानमंत्री देश की जनता के सामने रोते हैं और कहते हैं मुझे विपक्ष ने गलियां दी है ।

देश के इतिहास में, ऐसा शायद ही कभी देखा गया हो कि किसी प्रधानमंत्री ने इस तरह जनता के सामने लगातार शिकायत की हो। चाहे वह पंडित नेहरू हों या डॉ. मनमोहन सिंह, दोनों ने कभी अपनी व्यक्तिगत आलोचनाओं का मुद्दा नहीं बनाया। इन्होंने हमेशा राष्ट्र के बड़े मुद्दों पर ध्यान दिया और व्यक्तिगत हमलों को नजरअंदाज किया।

असली सवाल: क्या गालियां गिनना ही बचा है?

जब देश बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है, तब बीजेपी के नेता और स्वयं प्रधानमंत्री गालियों की गिनती करने में लगे हुए हैं। यह सवाल उठता है कि क्या सरकार अब असली मुद्दों से भाग रही है और केवल इन व्यक्तिगत आलोचनाओं पर ध्यान केंद्रित कर रही है?

Prime Minister Modi’s Tears A Diversion from BJP's Failures
Prime Minister Modi’s Tears A Diversion from BJP’s Failures

विकास के नाम पर वास्तविकता

बीजेपी बार-बार दावा करती है कि उसने विकास किया है, लेकिन हकीकत में विकास के नाम पर बीजेपी का प्रदर्शन कई सवाल खड़े करता है। उदाहरण के लिए:

  1. अयोध्या मंदिर की छत का रिसाव: जिस अयोध्या राम मंदिर को बीजेपी ने ऐतिहासिक और धार्मिक उपलब्धि के रूप में पेश किया, उसकी छत कुछ ही समय बाद टपकने लगी। क्या यह एक मजबूत विकास का प्रतीक है?
  2. अटल टनल में पानी भरना: प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन की गई इस महत्वपूर्ण परियोजना में पानी भर जाना यह दर्शाता है कि केवल उद्घाटन करना ही विकास नहीं है, बल्कि इसके रखरखाव और गुणवत्ता पर भी ध्यान देना चाहिए।
  3. नए संसद भवन की छत का टपकना: 1,200 करोड़ रुपये से बने नए संसद भवन की छत भी कुछ समय बाद ही टपकने लगी। क्या यह बीजेपी के विकास मॉडल का सही प्रतिबिंब है?
  4. स्पथ ऋषि और शिवाजी की मूर्तियों का गिरना: ये मूर्तियां, जिन्हें मोदी सरकार ने स्थापित किया था, कुछ ही महीनों बाद गिर गईं। यह घटनाएं साबित करती हैं कि बीजेपी का ध्यान केवल राजनीतिक लाभ पर है, न कि गुणवत्ता पर।
  5. वंदे भारत एक्सप्रेस की समस्याएं: जिन ट्रेनों को बड़े जोर-शोर से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया था, वे भी तकनीकी खामियों का शिकार हो गईं।

क्या बीजेपी का एजेंडा केवल गालियां गिनना है?

बीजेपी ने बार-बार गालियों को चुनावी मुद्दा बनाया है। लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या पार्टी अब केवल इस बात पर ध्यान दे रही है कि विपक्ष ने प्रधानमंत्री को कितनी गालियां दीं? क्या यह सरकार का काम है? देश की जनता को गालियों का हिसाब नहीं चाहिए, बल्कि विकास, रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे असली मुद्दों पर काम चाहिए।

Prime Minister Modi’s Tears A Diversion from BJP's Failures
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मनमोहन सिंह का उदाहरण

डॉ. मनमोहन सिंह ने जब 10 साल तक देश का नेतृत्व किया, उन्होंने कभी भी विपक्ष द्वारा की गई व्यक्तिगत आलोचनाओं पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने हमेशा देश के विकास पर ध्यान केंद्रित किया। उनके नेतृत्व में, भारत ने वैश्विक आर्थिक संकट का सामना सफलतापूर्वक किया।

डॉ. मनमोहन सिंह ने कभी जनता के सामने यह शिकायत नहीं की कि उन्हें गालियां दी गईं या उनका अपमान हुआ। उन्होंने हमेशा अपने काम को प्राथमिकता दी, न कि शब्दों की लड़ाई को।

नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक: नेतृत्व की सही मिसाल

नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक, भारत के प्रधानमंत्रियों ने कभी भी अपने व्यक्तिगत अपमान को मुद्दा नहीं बनाया। चाहे विपक्ष ने कितनी भी आलोचना की हो, उन्होंने हमेशा अपने कार्यों से जनता का विश्वास अर्जित किया।

अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष के साथ संवाद की परंपरा को मजबूत किया और नफरत की राजनीति से दूर रहकर देश की सेवा की।

 जनता को चाहिए परिणाम, न कि गालियों की गिनती

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी को अब यह समझना होगा कि जनता को केवल शब्दों और शिकायतों की राजनीति नहीं चाहिए। जनता को नतीजे चाहिए, विकास चाहिए, और राष्ट्र को आगे बढ़ाने की योजनाएं चाहिए। अगर बीजेपी इसी तरह गालियों की गिनती में लगी रही और प्रधानमंत्री रोते रहे, तो जनता को जल्द ही यह समझ आ जाएगा कि असली मुद्दों से बचने के लिए यह केवल एक राजनीतिक हथकंडा है।

सरकार को चाहिए कि वह अपनी जिम्मेदारियों को समझे और अपने काम के माध्यम से जनता का विश्वास अर्जित करे, न कि गालियों और शिकायतों के जरिए।


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